शेयर बाजार एक ऐसा जगह है जहाँ Investors और Traders किसी कंपनी के Equity Shares खरीद और बेंच सकते हैं।Traders जहाँ Equity Share Price में छोटे से हीं बदलाव मे लाभ कमाने की सोंच रखते है, जबकी निवेशक अपना पूँजी लंबी अवधि तक निवेशित रखते है ताकि उनका पूँजी समय के साथ अच्छे मुनाफे के साथ बढे।भारत में, NSE (National Stock Exchange) और BSE (Bombay Stock Exchange) Stock Trading के लिए दो प्रमुख मंच हैं।शेयर बाजार किस तरह काम करता है, इसको जानने के लिए आपको कुछ Share Market (Jargons) शब्दजाल जानने की आवश्यकता पड़ेगी। हम यहाँ आपको ऐसी ही कुछ सामान्य Terms को जानने में आपकी मदद करने वाले है, जिसे किसी भी Trader या Investor को जानना बहुत ही आवश्यक है।
जब बाजार उपर जाने लगता है और शेयर की कीमत बढ़ने लगती है तो उसे बाजार में तेजी माना जाता है। अगर एक तय सीमा में बाजार लगातार उपर की तरफ जाता रहता है तो उसे बुल मार्केट कहते है।
अगर आपको लगता है की आने वाले समय में बाजार नीचे की तरफ जायेगा तो कहा जाता है की आप बाजार को लेकर bearish हैं । इसी तरह जब एक लंबे समय तक बाजार नीचे की तरफ जा रहा होता है तो उसे बियर मार्केट कहा जाता है।
बाजार की दिशा और उस दिशा की ताकत को ट्रेंड कहा जाता है। उदाहरण के लिए जब बाज़ार नीचे जा रहा होता है तो कहते है बाजार मे गिरावट का ट्रेंड है। या अगर बाजार ना उपर जा रहा हो ना हीं तेजी से नीचे जा रहा हो तो कहा जाता है की बाजार दिशाहीन / Sideways ट्रेंड मे है।
किसी शेयर की तय कीमत को फेस वैल्यू या पार वैल्यू कहते हैं। इसे कंपनी तय करती है और ये उनके कॉर्पोरेट फैसलों के लिए महत्वपूर्ण होता है, जैसे डिविडेंड देने या स्टॉक स्प्लिट करने के समय कंपनी शेयर की फेस वैल्यू को ही आधार बनाती है।
स्टॉक एक्सचेंज हर स्टॉक के लिए कीमत की एक सीमा तय कर देते हैं। एक ट्रेडिंग दिन में स्टॉक की कीमत उस सीमा के बाहर नहीं जाने दी जाती है, ना उपर ना हीं नीचे की तरफ। ऊपरी कीमत की सीमा को अपर सर्किट और निचली सीमा को लोवर सर्किट कहते हैं। इसका इस्तेमाल जरूरत से ज्यादा उतार चढ़ाव को काबू में रखने के लिए किया जाता है।
लॉन्ग पोजिशन या लॉन्ग होना आपके सौदे यानी Trade की दिशा बताता है। अगर आप किसी कंपनी का शेयर खरीदे है या खरीदने वाले है तो कहा जाता है की आप उस कंपनी पर लॉन्ग हैं।
जब आप शॉर्ट करते हैं तो आपका नजरिया मंदी का होता है। शेयर या इंडेक्स नीचे जाने से आपका फायदा होता है। शॉर्ट करने के बाद अगर भाव उपर जाता है तो आपका नुकसान होगा। जब आप शॉर्ट करते हैं तो बाजार का कोई दूसरा भागीदार आपको शेयर उधार दे रहा होता है, बस आपको बाद मे शेयर देकर उधार चुकाना होता है।
स्क्वायर ऑफ का मतलब होता है की आप अपनी पोजिशन खत्म करना चाहते है। अगर आप लॉन्ग पोजिशन बनाकर बैठे है तो स्क्वायर ऑफ करने के लिए शेयर बेंच देते है। यहाँ आप शॉर्ट नहीं कर रहे अपने पास मौजूद शेयर को बेंच रहे हैं।
जब किसी शेयर में पोजिशन बनाके उसे उसी दिन स्क्वायर ऑफ करना चाहते है तो ऐसी पोजिशन को इंट्रा डे पोजिशन कहा जाता है।
OHCL का मतलब है ओपन हाई लो क्लोज। ओपन प्राइस यानी वो जहाँ खुला, जिस ऊँचाई तक उसकी कीमत गयी यानी हाई, जहाँ तक कीमत नीचे गयी यानी लो और बाजार बंद होते वक़्त जो कीमत थी यानी क्लोज।
किसी शेयर का वॉल्यूम किसी एक दिन उस शेयर में हुए कुल सौदों (बेचने और खरीदने दोनों) में शेयरों की संख्या को कहते हैं।
बाजार के अलग अलग सेगमेंट होते है जिनमें अलग अलग तरह के वित्तीय सौदे होते हैं। सेगमेंट को रिस्क और रिवार्ड के आधार पर अलग अलग किया जाता है। एक्सचेंज में तीन मुख्य सेगमेंट होते हैं।
इस सेगमेंट में शेयर, प्रेफरेंस शेयर, वारंट और एक्सचेंज ट्रेडेड फंड वगैरह खरीदे और बेचे जाते हैं। इस सेगमेंट को और हिस्सों में बाँटा जाता है। जैसे आम शेयरों को इक्विटी सेगमेंट में बेचा खरीदा जाता है। इस सेगमेंट को EQ निशान से पहचाना जा सकता है।आप शेयरों को कैपिटल मार्केट सेगमेंट में खरीद बेच सकते हैं।
फ्यूचर और ऑप्शंस सेगमेंट को शेयर वायदा बाजार कहते हैं। इस सेगमेंट में लीवरेज्ड प्रॉडक्ट के सौदे होते हैं।
बाजार के इस सेगमेंट में फिक्स्ड इन्कम प्रॉडक्ट के सौदे होते हैं, जैसे सरकारी या गवर्नमेंट सिक्योरिटीज, ट्रेजरी बिल्स, बॉन्ड्स और डिबेन्चर्स।
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